Wednesday, December 28, 2011

आए तुम

तुम आए आज
बिलकुल वैसे ही
जैसे आती है बाहर
कभी-कभी कुछ देर ना आने के
कुछ समय बाद |
खिल उठे हैं फूल
फूटने लगती है, कोपलें,
नव-पल्लव
और संचारित हो जाती है
नव-जीवन की लहर-समूची प्रकृति में
बिलकुल वैसे ही-
तुम आए हो आज |
जन्मों इंतज़ार के बाद
जैसे-सागर में
भटकती कश्ती को
किनारे से दूर
कहीं दिख जाता है-टापू
मरीचिका के समान
और कुछ पल ही सही
मगर
भर जाता है मन आशा से,
जीवित जी उठती है
सपनों की दुनियाँ पुन:
बिलकुल वैसे ही
तुम आए हो आज
सदियों के इंतज़ार के बाद ||


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Wednesday, November 30, 2011

ख्याल नहीं आता

तेरे आने का ख्याल भी नहीं आता
कल तू था बज्म में दिलबर के साथ
अफ़सोस तो होता है, पर मलाल नहीं आता
कि अब तेरे आने का ख्याल भी नहीं आता |
कभी ढूँढती थीं नज़रें, एक-दूजे को जमाने भर में
कल सामने खड़ा था तू
तुझसे आशना हूँ, ये अहसास भी नहीं आता
कि अब, तेरे आने का ख्याल भी नहीं आता |
मिल जाती है हर शै तबियत से मांग कर देख
नहीं मिलता एक महबूब
अब कुदरत पे उबाल भी नहीं आता
कि अब, तेरे आने का ख्याल भी नहीं आता |
मिट जाएगी दूरियाँ, ग़र चाहो शिददत से
एक ही उम्र के फालिसे मिटने का
अब जूनून भी नहीं आता
कि अब, तेरे आने का ख्याल भी नहीं आता ||

Saturday, October 29, 2011

जलियाँ वाला बाग

यह बगीचा
यहाँ लिखी है इबारत खून से
मासूम बेगुनाहों की
शहादत की गवाह हैं
आज भी – ये जर्जर दीवारें
इस बगीचे में
बच्चों की ऊँगली थामे
आकेले खडी हूँ – निर्विकार
उन आवाजों को सुन पाने में प्रसारत
जिन्हें न सुन पाना शांति सूचक हैं
सुनने से बदलेगा आज / बदलेगा कल
वे दर्दीली आहें
मौत से पहले मरती चीखें
मेले के जोश में मौत का शोर
कूआं लदफद लाशों से
थोड़े पानी में बहुत सा खून
बंदूकों से बरसती आग
ख़ामोशी में सुनी
जालिमों की आवाज़ – “भुन दो जिंदा सालों को”
ऊँगली के पोरों से कान किए बंद खडी हूँ
जिसे सुनना तड़पाता है
जिन पर गुजरी चीत्कारें
उनका दर्द कौन जाने?
हाथ जोड़ किया नमन
धरती पर बैठ किया श्राद्ध तर्पण
स्मारक के सामने चित्र खिंचवा
बड़े आकर में इसे बनवा
मित्रों – परिचितों को दूँगी
अमृतसर की निशानी
जहाँ जाना गर्वात है
दीवारों पर प्रेम सन्देश और घटिया बातें
हर कोई लिख आता हैं
मगर
बगीचे की देख-रेख और सफाई करने में
हर शक्स शर्माता है||
हर शक्स शर्माता है||

Tuesday, October 25, 2011

कुछ कह देते...


दो शब्द ही सही
कुछ कह देते |
श्रद्धा सुमन मैं समझ लेती
तुलसी दल सम ले लेती
मैं गंगाजल सा पी लेती
दो शब्द ही माही
कुछ कह देते ||
तुम निराकार भाव से खड़े रहे
सावन भादों ले आँखों में
मैं जलती, पल-पल मिटती रही
दो शब्द ही सही
कुछ कह देते ||
मुख फेरा तुमने निश्चय ही
कायर कह दूँ या बैरागी तुम
मैं मिटने से पहले अंतिम क्षण
भरपुर नज़रों से तकती थी
दो शब्द ही सही तुम लेकेन
कुछ कह देते….||

Sunday, April 17, 2011

बिखरा हुआ सामान


चारों तरफ अरमान है और मैं हूँ
बिखरा हुआ सामान है और मैं हूँ |
धुएं में डूबा हुआ असबाब का शहर
हर नज़र कातिल, हर शख्स बेखबर
बुझ रहे अहसास दुनिया की भीड़ में
निश्तर उठाए जान है और मैं हूँ
बिखरा हुआ सामान है और मैं हूँ |
हर नज़र मेहरबां तुझ पर मेरे
हुजूर
हर शख्स परेशां तेरा भी क्या
कुसूर
सादगी लपेटे तू गुज़रे जो
महफिलों से
इक तरफ ये शान है और मैं हूँ
बिखरा हुआ सामान है और मई हूँ
मिलता नहीं कहीं से इन्सान का
पता
मिल भी जाये इंसा, इंसानियत
लापता
क्यों देखकर भी हम कह नहीं
पाते
कातिल के ये नशान हैं और मैं हूँ
बिखरा हुआ सामान है और मैं हूँ

Thursday, March 10, 2011

तेरा नाम

आँखें बंद कर जब भी मैंने कुछ याद किया
क्यों तेरा ही नाम मेरे लब पे आ गया ?
अपने खुदा से पूछ
मेरी दुआ में क्या खलल है
शुरू खुदा के नाम से
कर भी दूँ
तो आख़िर में फिर तूँ ही तूँ क्यों आ गया ?
दीवानगी मुझ पर इस कदर क्यों छाई है ?
मूरत भी देखूँ तो
उसमें तेरा ही चेहरा समाँ गया |
इबादत में अगर मैं
हाथ उठा भी दूँ
हाथों में फिर तेरा ही चेहरा क्यों समाँ गया ?
तुझे भुलाने की कोशिशें मैं कितनी करूँ
इन्तख्वाब में फिर
तूँ ही तूँ क्यों………आ गया |
इश्क इससे ज्यदा वन्दना क्या करे
खुदा के माँग कहने पर
तेरा ही नाम मेरे लब पे आ गया ||

Saturday, March 5, 2011

तुम भूल जाते हो !!

तुम हर बार भूल जाते हो |
जोड़ते हो,
सहेजते हो
पर फिर भी
तुम
हर बार भूल जाते हो |
वे चाहतें
वह रखना ख्याल
वह एतबार,
करते तो हो विश्वास बार-बार |
तुम्हारी वफ़ा,
वह यकीं
पर
फिर भी तुम हर बार भूल जाते हो |
वह प्यार
वह हक़ जताना तुम्हारा
वह अधिकार लेना |
पर देना ?
तुम हर बार भूल जाते हो |

क्यों भूल जाते हो ?

Friday, February 25, 2011

ताजा हवा का झोंका

मैं एक झोंका ताजा हवा का
मेरे आने से राहत आती है
सुकून लेकर जाती हूँ
मैं दस्तक देती हर एक ड्योढ़ी पर
आँगन में किसी के भी बिना पूछे
दाखिल हो जाता हूँ
कोई चाहे तो अपना ले मुझे
न चाहे तो करले किवाड़ बन्द
पर मैं तो रूकती नहीं
दौड़ती फिरती हूँ हर ओर -चहुं ओर
गति और सूरत बदल जाती है
हर देश और नगर में
भाषा बदल जाती, लोग बदल जाते हैं
पर प्रकृति बदली है कभी?
गम में तुम्हारे ग़मगीन हो जाती हूँ
खुशी में बाहरे लुटाती हूँ
हर एक का ख्याल मुझे है
सबके मन को पढ़ा मैंने
पर क्या तुम मुझे पढ़ पाये ?
तुम्हारे जीवन में ताजगी भरने भेजा है
आसमाँ ने मुझे
और तुम
मेरा उन्मुक्त स्वभाव देख
स्वच्छंद हँसी सुन
डर गये ?
ठिठक कर खड़े हो गये दूर
पर
मैं तो एक झोंका हूँ ताजा हवा का
जो तुम्हारे जीवन में
दाखिल हुआ
ताजगी और उमंग ले कर
जिसे तुम अपना न सके
अब मैं चली किसी और नगर
तुम चाहो यदि अपनाना मुझे
तो पीछा करो
शायद मैं पलटू एक बार तेरे लिए !

Monday, February 21, 2011

राज छिपा रखे हैं


अपने जज्बात सीने में छिपा रखे हैं
मेरा तू है या मै तेरा
ये अल्फाज जुदा रखे हैं |
वो हसीं शाम की चादर फैली
या कि आँचल तेरा छाया मुझ पर
अपने हाथों की बंद हथेली में
मैंने लम्हात छिपा रखे हैं……………..|
वो मुझसे यों मिलना तेरा
दिल फरेब नजरों से तकना तेरा
पास रहकर भी क्यों दुरी हैं……………|
तेरी बातों की थी जादूगरी
मय ही मय हर सु बिखरी हुई
अपने सिने के उठते छालों में
तेरे राज छिपा रखे हैं……………|
अपने जज्बात सीने में छिपा रखे हैं
मेरा तू है या मैं तेरा
ये अल्फाज जुदा रखे हैं…………….|

Monday, February 7, 2011

"आशीर्वाद"

तुमने देखा, हम भी जब बड़े होंगे तब हमारे पत्ते भी इतने ही सुन्दर दिखाई देंगे, एक पौधे ने दूसरे से कहा |
जब बड़े-बड़े फल मेरी शाखाओं से लटक कर धीरे-धीरे पकेंगे और पीला रंग ले लेंगे, उस समय फलों की मिठास मिश्री जैसी होगी |
” हूँ हु, और फिर यही माली बेदर्दी से तुम्हारे शारीर पर उगे सुन्दर-स्वादिष्ट फलों को खींच-खींच कर तोड़ेगा, कितनी पीड़ा होगी तुम्हें | मैं तो इन सब बातों से मुक्त हूँ, न जन्म देने की फिक्र और ना ही अपनों से बिछड़ने का दर्द |”
माली बरसों से चुपचाप बगीचे में काम करते-करते, पेड़-पोधों की जुबान समझने लगा था | दोनों की बातें सुन, उसने मादा पपीता को नज़रों ही नज़रों में सहलाया और दूसरे शिशु पौधे को जड़ से उखाड़ कर बगीचे के बाहर फ़ेंक दिया |
एक बार फिर वह हाथ में खुरपी ले अन्य वनस्पतियों की बातें सुनने में व्यस्त हो गया | बगीचे की लताओं-पौंधों ने लम्बी साँस ली, कन्या होने पर ही जीवत रहने का आशीर्वाद मिलने पर !