Monday, February 7, 2011

"आशीर्वाद"

तुमने देखा, हम भी जब बड़े होंगे तब हमारे पत्ते भी इतने ही सुन्दर दिखाई देंगे, एक पौधे ने दूसरे से कहा |
जब बड़े-बड़े फल मेरी शाखाओं से लटक कर धीरे-धीरे पकेंगे और पीला रंग ले लेंगे, उस समय फलों की मिठास मिश्री जैसी होगी |
” हूँ हु, और फिर यही माली बेदर्दी से तुम्हारे शारीर पर उगे सुन्दर-स्वादिष्ट फलों को खींच-खींच कर तोड़ेगा, कितनी पीड़ा होगी तुम्हें | मैं तो इन सब बातों से मुक्त हूँ, न जन्म देने की फिक्र और ना ही अपनों से बिछड़ने का दर्द |”
माली बरसों से चुपचाप बगीचे में काम करते-करते, पेड़-पोधों की जुबान समझने लगा था | दोनों की बातें सुन, उसने मादा पपीता को नज़रों ही नज़रों में सहलाया और दूसरे शिशु पौधे को जड़ से उखाड़ कर बगीचे के बाहर फ़ेंक दिया |
एक बार फिर वह हाथ में खुरपी ले अन्य वनस्पतियों की बातें सुनने में व्यस्त हो गया | बगीचे की लताओं-पौंधों ने लम्बी साँस ली, कन्या होने पर ही जीवत रहने का आशीर्वाद मिलने पर !

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