Wednesday, December 28, 2011

आए तुम

तुम आए आज
बिलकुल वैसे ही
जैसे आती है बाहर
कभी-कभी कुछ देर ना आने के
कुछ समय बाद |
खिल उठे हैं फूल
फूटने लगती है, कोपलें,
नव-पल्लव
और संचारित हो जाती है
नव-जीवन की लहर-समूची प्रकृति में
बिलकुल वैसे ही-
तुम आए हो आज |
जन्मों इंतज़ार के बाद
जैसे-सागर में
भटकती कश्ती को
किनारे से दूर
कहीं दिख जाता है-टापू
मरीचिका के समान
और कुछ पल ही सही
मगर
भर जाता है मन आशा से,
जीवित जी उठती है
सपनों की दुनियाँ पुन:
बिलकुल वैसे ही
तुम आए हो आज
सदियों के इंतज़ार के बाद ||


खरीदने के लिए – http://www.a1webstores.com/kuch-keh-dete/itemdetail/8188167371/

2 comments:

  1. ek sheetal pravaahmayi kavitaa .... badhayee

    utpal
    http://utpalkant.blogspot.com

    ReplyDelete
  2. आपको कविता पसंद आई और आपने अपनी राय भी व्यक्त की इसके लिए धन्यवाद |

    ReplyDelete