Friday, February 25, 2011

ताजा हवा का झोंका

मैं एक झोंका ताजा हवा का
मेरे आने से राहत आती है
सुकून लेकर जाती हूँ
मैं दस्तक देती हर एक ड्योढ़ी पर
आँगन में किसी के भी बिना पूछे
दाखिल हो जाता हूँ
कोई चाहे तो अपना ले मुझे
न चाहे तो करले किवाड़ बन्द
पर मैं तो रूकती नहीं
दौड़ती फिरती हूँ हर ओर -चहुं ओर
गति और सूरत बदल जाती है
हर देश और नगर में
भाषा बदल जाती, लोग बदल जाते हैं
पर प्रकृति बदली है कभी?
गम में तुम्हारे ग़मगीन हो जाती हूँ
खुशी में बाहरे लुटाती हूँ
हर एक का ख्याल मुझे है
सबके मन को पढ़ा मैंने
पर क्या तुम मुझे पढ़ पाये ?
तुम्हारे जीवन में ताजगी भरने भेजा है
आसमाँ ने मुझे
और तुम
मेरा उन्मुक्त स्वभाव देख
स्वच्छंद हँसी सुन
डर गये ?
ठिठक कर खड़े हो गये दूर
पर
मैं तो एक झोंका हूँ ताजा हवा का
जो तुम्हारे जीवन में
दाखिल हुआ
ताजगी और उमंग ले कर
जिसे तुम अपना न सके
अब मैं चली किसी और नगर
तुम चाहो यदि अपनाना मुझे
तो पीछा करो
शायद मैं पलटू एक बार तेरे लिए !

2 comments:

  1. कोमल भावों से सजी ..
    ..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
    आप बहुत अच्छा लिखती हैं...वाकई.... आशा हैं आपसे बहुत कुछ सीखने को मिलेगा....!!

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  2. संजय भास्कर जी आपको मेरी कविता पसंद आई और आपने प्रतिक्रिया भी दी इसके लिए बहुत धन्यवाद !

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